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भिक्षुक / सूर्यकांत त्रिपाठी “निराला”

वह आता– दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता। पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक, चल रहा लकुटिया टेक, मुट्ठी भर दाने को– भूख मिटाने को मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता– दो टूक कलेजे के करता पछताता

Posted in कविता संकलन